बहुभागीय पुस्तकें >> राम कथा - युद्ध राम कथा - युद्धनरेन्द्र कोहली
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राम कथा पर आधारित उपन्यास, सप्तम और अंतिम सोपान
तेरह
रावण झंझावत के समान आया और सीता के मन को झकझोर कर चला गया। सीता के मन में इतनी व्यथा थी कि इच्छा हो रही थी कि अपने प्राण दे दें। अब किस आशा पर वे जीवन धारण करें? अब राम ही नहीं रहे तो मुक्ति और बंधन में भेद ही क्या रह गया? मुक्त नहीं होंगी तो क्या करेंगी इस जीवन का? और मुक्त होकर भी क्या करेंगी? रावण की धर्षिता के रूप में जीवित रहने का क्या अर्थ?
...कैकेयी आज सफलकाम हुई है। इसीलिए मांगा था उसने राम का वनवास...जब अकेले सौमित्र अयोध्या लौटकर राम और सीता की मृत्यु का समाचार देंगे तो कैकेयी प्रसन्न हो सकेगी?...माता कौशल्या का क्या होगा? बेचारी दुःख के मारे प्राण दे देंगी...
त्रिजटा कह रही थी कि युद्ध अभी आरम्भ ही नहीं हुआ है। रावण भी यही कह रहा था। बिना युद्ध के ही आकस्मिक आक्रमण कर सोये हुए राम को छलपूर्वक मार डाला गया? यह कैसी मृत्यु है?...निद्रा में मृत्यु। यह किसी वीर की मृत्यु नहीं है...पर यह कैसे संभव है? राम जैसा योद्धा इस प्रकार कैसे मारा जा सकता है? फिर उनके साथ सौमित्र हैं, सुग्रीव और अनुमान भी होंगे...वे सब-के-सब इतने असावधान कैसे हो सकते हैं?...राम का वध हो गया है तो अब युद्ध कौन कर रहा है?..सीता के मन में अनेक सन्देह उभरने लगे...
रावण ने राम का सिर लाकर उनके सामने क्यों नहीं डाल दिया? क्या वह झूठ बोल रहा था? क्या वह छल मात्र था? क्या वह सीता का मनोबल तोड़ने के लिए षड्यन्त्र मात्र था?...यदि राम का वध हो चुका है तो मंत्रियों को इतना आवश्यक कार्य क्या था? रावण को जाने की इतनी त्वरा क्या थी? उसने सीता के बार-बार कहने पर भी अपनी बात के प्रमाण-स्वरूप राम का सिर लाकर क्यों नहीं दिया?...
सीता जितना सोचती थीं, उनका द्वन्द्व उतना ही स्फीत होता जाता था...उन्होंने रक्षिकाओं पर एक दृष्टि डाली : कदाचित् उनमें त्रिजटा हो और वह कुछ बता सके। किंतु त्रिजटा वहां नहीं थी। इस बीच वह कहीं चली गई थी। अगले ही क्षण सीता का मस्तिष्क दूसरे पक्ष की ओर चल पड़ा, यदि रावण सच बोल रहा था, तो किसी को और क्या कहना है? और यदि वह जान-बूझ कर झूठ बोल रहा था, तो अपने राजाधिराज की इच्छा समझकर, कोई रक्षिका उसकी बात का खंडन करने का दुस्साहस कैसे करेगी?
संध्या के आस-पास सीता ने सरमा को अपनी ओर आते देखा। उन्होंने घबराई हुई दृष्टि चारों ओर घुमाई। कहीं कोई रक्षिका दिखाई नहीं पड़ रही थी। दूर एक वृक्ष के नीचे अकेली त्रिजटा बैठी हुई थी...।
"बधाई हो बहन!" सरमा ने निकट आते ही धीरे से कहा, "राम अपनी सेना सहित सागर पार कर आए हैं। विभीषण उनके साथ हैं। आर्य राम ने मेरे प्राणनाथ को लंका का राजाधिराज घोषित कर उनका राजतिलक कर दिया।"
"पर..."
"पर क्या?"
"प्रात: तुम्हारा जेठ कह गया है कि उसने राम का वध कर दिया है।"
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